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‘नई सांस’ था कोरोना टीका

कोरोना वैश्विक महामारी से जुड़ी एक खबर हम सभी को चिंतित, व्यथित कर सकती है, लेकिन चिकित्सकों ने इसे घबराहट का मुद्दा न मानने की सलाह दी है। दुनिया में कोरोना महामारी के दौरान ब्रिटेन की कंपनी एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने एक टीके का आविष्कार किया था। उस टीके को भारत में ‘कोविशील्ड’ के नाम से सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने बेचा और वितरित किया। चूंकि इतने लंबे अंतराल के बाद ब्रिटिश मीडिया के जरिए यह खुलासा हुआ है कि एस्ट्राजेनेका के टीके से खून में थक्के जम सकते हैं और व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ सकता है। कंपनी ने अदालत में यह स्वीकार भी किया है, लेकिन इसे ‘दुर्लभ प्रभाव’ भी माना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रपट 2021 में आई थी, जिसका निष्कर्ष था कि कोरोना टीके से 10,000 में से मात्र एक व्यक्ति ही ‘साइड इफेक्ट’ का शिकार होता है। खबर इसलिए चिंतित करती है, क्योंकि भारत में सर्वाधिक 175 करोड़ खुराकें ‘कोविशील्ड’ टीके की दी गई थीं और 36.39 करोड़ खुराकें ‘कोवैक्सीन’ टीके की दी गईं। इस टीके के निर्माण में भारत सरकार की भी हिस्सेदारी है। बहरहाल ब्रिटेन में कोरोना टीके के दुष्प्रभावों के मद्देनजर 163 लोगों को मुआवजा दिया गया। उनमें से 158 लोगों ने एस्ट्राजेनेका का टीका लगवाया था। कोरोना-काल में टीकाकरण ने दुनिया में 60 लाख से अधिक बीमारों को नई जिंदगी दी और भारत में करीब 34 लाख संक्रमितों को ‘नई सांस’ दी थी। भारत जैसे घनी और संकरी आबादी वाले देश में यह डाटा बेहद महत्वपूर्ण और मानवीय माना जा सकता है।
भारत में 220 करोड़ से ज्यादा खुराकें दी गईं। उनमें से 254 लोगों पर ही टीके के दुष्प्रभाव सामने आए, लिहाजा भारत में टीके का उलटा असर 0.00001 फीसदी ही रहा। चिकित्सकों का भी कहना है कि टीके से औसतन 10 लाख लोगों में से जानलेवा जोखिम मात्र एक व्यक्ति को ही देखा गया, जबकि टीके ने महामारी की घातकता 80-90 फीसदी तक कम की। रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाई। दरअसल थक्का जमने की बीमारी को मेडिकल भाषा में ‘टीटीएस सिंड्रोम’ कहते हैं, जो करीब 100 साल पुराना है। दिल का अचानक दौरा पडऩा, अचानक अचेत होकर जमीन पर गिर जाना, हार्ट अटैक से मौत हो जाना आदि कोरोना टीका लगाने से पहले भी मौजूद थे। यदि 2022 में, कोरोना के चरम के ऐन बाद, हार्ट अटैक से 32,410 अचानक मौतें हुईं, तो 2019 से पहले भी 24-25,000 ऐसी ही मौतें हुई थीं। चिकित्सकों का सवाल है कि वे मौतें क्यों हुईं? तब तो कोरोना महामारी नहीं थी? लिहाजा शोधरत चिकित्सकों की स्थापना है कि ऐसा कोई वैज्ञानिक और क्लीनिकल साक्ष्य नहीं है, जो कोरोना टीके का सीधा संबंध मौत के साथ साबित करता हो। ब्रिटिश अदालत में 51 केस एस्ट्राजेनेका के खिलाफ दर्ज किए गए। मुख्य रूप से जेमी स्कॉट अदालत गए और टीके से पीड़ित लोगों ने कंपनी से 1000 करोड़ रुपए तक के मुआवजे मांगे। करीब 20 देशों ने एस्ट्राजेनेका के टीके पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन ये सभी ‘अर्द्धसत्य’ ही थे। जब दुनिया में कोरोना महामारी फैली थी, तब हाहाकार यही था कि किस तरह मनुष्य को बचाया जाए? लोग संक्रमण, ऑक्सीजन की कमी, सांस की निरंतरता टूटने, फेफड़ों के फेल हो जाने के कारण मर रहे थे। शमशान में जगह कम पड़ी, तो लाशों को नदी में बहा दिया गया। यदि किसी का संक्रमण सामने आया, तो यह निश्चित नहीं था कि वह जिंदा रहेगा या नहीं। भारत में कोरोना वायरस अब भी मौजूद है, क्योंकि एक माह में औसतन 3000 संक्रमित मामले दर्ज किए जा रहे हैं। विश्व में कोरोना महामारी से करीब 70 लाख मौतें हुईं, लेकिन आज हम अपेक्षाकृत आश्वस्त हैं। हमने टीकाकरण कराया है या हम संक्रमित हो चुके हैं। दोनों ही स्थितियों में रोग प्रतिराधक क्षमता हमारे भीतर पर्याप्त है। हमें घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि डॉक्टरों के निष्कर्ष हैं कि टीके के दुष्प्रभाव अधिकतम 6 महीने के दौरान सामने आ जाते हैं, जबकि कोरोना खत्म हुए और टीकाकरण का अभियान सम्पन्न हुए 2 साल से अधिक का समय गुजर चुका है। जो होना था, वह हो चुका, शेष अतीत हो गया। यह संपादकीय कोरोना के प्रति जागरूकता और अद्यतन करने के लिए है, लिहाजा बीमार करने वाले लक्षणों से जरूर बचें। चिकित्सा विशेषज्ञ सलाह दे रहे हैं कि जिन्होंने कोरोना की वैक्सीन लगाई है, उन्हें डरने की कोई जरूरत नहीं है।

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