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दिल्ली(अश्विनी भाटिया)/दिल्ली में अभी स्थानीय स्तर पर मंडलों व जिलाअध्यक्षों की नियुक्ति की गई है।इन नियुक्तियों से कई जगह पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं में रोष भी है और वह दबी जुबान में अपनी उपेक्षा का दर्द को व्यक्त कर रहे हैं। नाम न उजागर करने की शर्त पर इन्होंने कहा कि वास्तविकता तो यह है कि भाजपा के कठिन समय में जिन लोगों ने पार्टी के लिए दिन-रात मेहनत की,कष्ट झेले,पुलिस की लाठियां खाई,जेल गए और अपने परिवार को भी आर्थिक संकटों में डाल दिया,आज जब पार्टी को सत्ता मिल गई तो कौन पूछता है उन पुराने कार्यकर्ताओं को?आज जो नेता येन-केन-प्रकारेण किसी पद पर विराजमान होने में सफल हो जाते है,उसके इर्द-गिर्द चापलूसों की घेराबंदी हो जाती है।मजेदार बात तो यह है कि जो लोग विधायक और निगम पार्षद बन चुके हैं,उनमें से अधिकांश के चहेते या तो बिल्डर माफिया हैं या उन्होंने अपने चहेतों को बिल्डर बना लिया है।यही बिल्डर माफिया और सट्टेबाज ही आज भाजपा के कर्मठ कार्यकर्त्ता बनकर घूम रहे हैं और इसका परिणाम सामने है।दिल्ली में कई दशक बीतने के बाद भी भाजपा सत्ता में नहीं लौट सकी है। इस स्थिति में भाजपा का निकट भविष्य यानि अगले चुनाव में भी दिल्ली की सत्ता पर आधिपत्य होता दिखाई नहीं दे रहा।निगम पार्षद,विधायक हो या सांसद जनता की तो छोड़ो अपने कार्यकर्ताओं के सुख-दुख में भी शामिल नहीं होते हैं, इस बात को सभी जानते हैं।कांग्रेस की राह पर चल रही दिल्ली की इकाई को यह नहीं समझ आ रहा कि पार्टी संगठन में जमीनी कार्यकर्ताओं को तरजीह देने से ही पार्टी को लाभ होगा ना कि अपने करीबी नाकारा चंपुओं को पदों पर बैठाने से। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस बात को जितना जल्दी समझ ले तो पार्टी का हित ही होगा अन्यथा कांग्रेस का हश्र देख लो जीता-जागता उदाहरण सभी के सामने है।
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