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दिल्ली (अश्विनी भाटिया)/रुपहले पर्दे पर नाटकीय जीवन जीना और वास्तविक जीवन जीने में जमीन- आसमान का अन्तर है। यह जरूरी नहीं है कि रंगमंच पर योद्धा और साहसी दिखनेवाले लोग अपने असल जीवन में भी वैसे ही हों।पर्दा किसी भी कलाकार को यश और धन तो दे सकता है ,लेकिन विपरीत परिस्थितियों में जीने का साहस और प्रबल इच्छाशक्ति नहीं । जीवन में आनेवाले उतार -चढ़ाव का सामना करनेवाला और प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करने वाला ही वास्तविक नायक होता है। उसका जीवन ही समाज के लिए आदर्श और अनुकरणीय होता है।उससे ही समाज के दूसरे लोगों को भी लडने और जीने की प्रेरणा मिलती है। जो लोग विकट परिस्थिति में अडिग रहकर उसका सामना नहीं कर पाते और उनसे पलायन करके या घबराकर अपने जीवन का अंत कर ले,वो कायर होते हैं। यह कायर और पलायनवादी न तो समाज के लिए आदर्श हो सकते हैं और न ही नायक । चकाचौंध में विलासिता पूर्ण जीवन जीने वाले इन भोगी कायर जीवों का जीवन अनुकरणीय नहीं होता।अत हमें भी ऐसे लोगों को अपना आदर्श मान कर अपना जीवन नरकीय नहीं बनाना चाहिए। साहसी और संघर्षशील साहसी व्यक्तियों का अनुकरण करने से ही हम सुखी और खुश रह सकते हैं। धन और यश हमें जीवन का वास्तविक आंनद नहीं दे सकता है और न ही संघर्ष करने की क्षमता।
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